
नवरस और देवी शिल्प इस शब्द श्रृंखला का अंतिम पुष्प प्रस्तुत है, शांत रस। इस नवरात्रि उत्सव के दौरान, देवी जगन्माता के शृङ्गार, हास्य, करूण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स और अद्भुत जैसे अष्टरसयुक्त विभिन्न स्वरूप, तत्त्वों का अवलोकन किया है। नवम रस के रूप मे आज शांत रस का परमर्श हम लेंगे। भारतीय परंपरा में मोक्षप्राप्ति का एक राजमार्ग, सगुण स्वरूप मे अभिव्यक्त दैवत तत्त्वों के चिंतन और भक्ति में व्यक्त किया गया है। भरतमुनि के अनुसार सभी रसों की परिणीती अन्तः शांत रस मे होती है। इसलिए आचार्य अभिनवगुप्त भी शांत रस को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार सूत्रों में अंतिम चरण मोक्षसाधन है। तो जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्षप्राप्ति है, जो इस शांत रस का भी लक्ष्य माना गया है। इसलिए शांत रस की महत्त वृद्धिंगत हो जाता है।
न यत्र दुःखं न सुखं न चिन्ता न द्वेषरोगौ न च काचिदिच्छा|
रसः स शान्तः कथितो मुनीन्द्रैः सर्वेषु भावेषु समप्रमाणः||
उपरोक्त श्लोक का तात्पर्य यह है की, जहाँ समस्त भाव-भावना का समत्त्व साध्य होता है, अर्थात जहाँ सुख-दुःख, चिन्ता, क्रोध, द्वेष, कामना इन सभी भवनाओंका पूर्णतः अभाव हो वह शान्त रस कहलाता है।
शमस्थायिभावात्मको मोक्षप्रवर्तकः|
भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में शम को शांत रस का स्थायीभाव कहा गया है। तो स्वाभाविक रूप से शांत रस तपस्या और योगीसम्पर्क, वैराग्य, चित्तशुद्धि जैसे विभावों से उत्पन्न होता है।
मोक्षाध्यात्मसमुत्थस्तत्त्वज्ञानार्थहेतुसंयुक्तः |
नैःश्रेयसोपदिष्टः शान्तरसो नाम सम्भवति ||
मोक्षप्राप्ति के लिए आध्यात्मिक ज्ञान आवश्यक है। यह आध्यात्मिक ज्ञान से शांत रस उत्पन्न होता है। तत्त्वज्ञान में निहित सहेतूक अर्थ, जिसे निर्वाद कहते है और मोक्षज्ञान के लिए बताए गए वचन, इन सभी में शांत रस का अंतर्भाव होता है। इसलिए अन्य आचार्यों के अनुसार निर्वेद को शांत रस का स्थायीभाव माना गया है। दूसरी ओर, कुछ आचार्य जुगुप्सा, उत्साह और धृति को शांत रस का स्थायीभाव मानते हैं।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण में चित्रसूत्र शांत रस को इस प्रकार परिभाषित करता है –
यद्दत्सौम्याकृतिध्यानधारणासनबन्धनम् |
तपस्विजनभूयिष्ठं तत्तु शान्तरसे भवेत् ||
उपरोक्त श्लोक का अभिप्राय यह है की, कर्मों के सौम्यता, ध्यान धारने की योगिक अवस्था, तपस्वियों की तरह चेहरे पर शांत और कोमल भाव, शांत रस की अभिव्यक्त करते है।
भारतीय शिल्पकला में कई मूर्तियां हैं, जो एक शांत स्वाद देती हैं। बुद्ध, जैन तीर्थंकर, विष्णु-शिव जैसे हिंदू देवताओं के योग अभ्यास में कई देवता इस शांत रस के परिचारक हैं। देवी मूर्तियों में भी सरस्वती, ब्राह्मी, ललिता जैसी कई देवी-देवताओं से शांत रस लिया जा सकता है। लेकिन हम देवी के सर्वशक्तिमान रूप को देखने जा रहे हैं।
सर्वमंगला
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ||
स्वयं मंगलमयी और सभी का मंगल करनेवाली नारायणी को मेरा नमस्कार। दुर्गा सप्तशती का यह श्लोक देवी के मंगलकारी स्वरूप को नमन करता है।
देवी सर्वमंगला का यह रूप अत्यंत सौम्य और मंगलकारी है। देवी सर्वमंगला का उल्लेख विष्णुधर्मोत्तारपुराण और शरभतंत्र में मिलता है। कहा जाता है कि उनकी कांती सुवर्णमयी होनी चाहिए। देवी को दिव्य और चमकीले आभूषणों से अलंकृत करना चाहिए। चतुर्भुज देवी के दाहिने हाथ में अक्षमाला और बाएं हाथ में शक्ति या जल कलश होना चाहिए। शरभतंत्र के अनुसार, देवी सर्वमंगला अपने भक्तों को धन प्रदान करने वाली है। हालांकि, यह उल्लेख किया गया है कि उसके दो हाथों में से एक में अभय या वरद मुद्रा होनी चाहिए और दूसरे हाथ में मतुलिंग होना चाहिए। वह एक शेर पर बैठी दिखाई देती है। वह क्वचित सुंदर कमल पर विराजमान हुवी भी दिखाई देती है। वास्तुविद्या दीपर्णव ग्रंथ में, सर्वमंगला देवी को माँ सरस्वती के रूपों में से एक माना जाता है। इसलिए उन्हें देवी सरस्वती के रूप में वर्णित किया गया है।
वस्त्रलंकार संयुक्ता सुरूपा अर्थात उज्ज्वल वस्त्र और आभूषण परिधान करे जो बहुत ही सुन्दर लग रही है। सुप्रसन्ना का अर्थ है कि जो स्वयं प्रसन्न वदना है। सुतेजाक्षा अर्थात जो स्वयं तेजसे परिपूर्ण है, वह देवी सर्वमंगला है ।
ओडिशा में 12वीं शताब्दी की इस देवी मूर्ति में सर्वमंगला देवी कमल पर ललितासनात में विराजमान हैं, जिसमें एक पैर नीचे है तो दूसरा मुड़ा हुआ है। देवी के आसानपीठ के नीचे एक शेर उत्कीर्ण किया गया है। देवी के पार्श्व हाथ में अक्षमाला और कमल है। एक हाथ भक्तों को अभय प्रदान करता है, जबकि दूसरे हाथ मे छोटा कमंडल है। देवीने परिधान किए रेशमी वस्त्र इस शिल्प मे स्पष्ट हो रहे है। उज्ज्वल अलंकार, देवी सर्वमंगला ने धारण किए है। उनका मस्तक जटामुकुट से सुशोभित है। त्रिनेत्र धारण करनेवाली देवी सर्वमंगला की इस मूर्ति में उनके चेहरे पर सौम्य मुस्कान है, इसलिए उनके चेहरे पर सौम्य, शांत भाव की अभिव्यक्ति आसानी से दिखाई देती है। उनके अर्धोन्मीलित अर्थात आधी बंद आंखें शांत रस को प्रस्तुत करती है। देवी सर्वमंगला की मूर्ति में शांत रस की अभिव्यक्ति से मोक्ष का मार्ग अधिक समृद्ध बनाया है, बस जरूरत है सही दृष्टि की, जो इस अभिव्यक्ति की व्याख्या कर सके।
देवी सर्वमंगला सभी को मंगलता प्रदान करे, यह कामाना करके नवरस और देवी शिल्प इस आलेख श्रृंखला को आज विजयादशमी के दिनपर विराम देती हूँ।